नई पुस्तकें >> कठघरे से कठघरे सेधीरेंद्र नारायण सिंह
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मैं सुखी राम। कैदी नंबर पाँच सौ बत्तीस। कठघरे से बोल रहा हूँ। जो भी सुन रहे हों, मेरे घरवालो को इत्तला दे दें, मैं यहाँ अच्छी तरह हूँ। पक्का मकान है। बरसात में छप्पर चूने का भय नहीं। सवेरे चाय मिल जाती है। नाश्ते में चना-गुड़ और भोजन के लिए पूछो मत। सप्ताह में मांस, मछली और अंडे भी मिल जाते हैं। रोटी, चावल, चने की दाल और हरी सब्जी प्रतिदिन का भोजन है। ओढ़ने और बिछाने को दो कंबल, पहनने को कपड़े, साबुन और तेल, सबकुछ मिलता है।
कह दें गिरधारी से, कर दे हरिकिशन का खून और चले आएँ जेल। इस प्रजातंत्र में घर की व्यवस्था से जेल की व्यवस्था अच्छी है।
—इसी संग्रह से
मन को झकझोर देनेवाली मर्मस्पर्शी व संवेदनशील कहानियों का संकलन, जिन्हें पढ़कर आप भावुक हो जाएँगे और आपकी संवेदना झंकृत हो जाएगी।
कह दें गिरधारी से, कर दे हरिकिशन का खून और चले आएँ जेल। इस प्रजातंत्र में घर की व्यवस्था से जेल की व्यवस्था अच्छी है।
—इसी संग्रह से
मन को झकझोर देनेवाली मर्मस्पर्शी व संवेदनशील कहानियों का संकलन, जिन्हें पढ़कर आप भावुक हो जाएँगे और आपकी संवेदना झंकृत हो जाएगी।
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